हमारे सपनों के जहान में,
जमीन और आसमान में ,
रूठने का हक तो शायद तुम्हें ही है।
बात कहीं से भी शुरू हो,
मेरे अल्फाजों की भी कोई मजबूरी हो,
पर रूठने का हक तो शायद तुम्हें ही है ।
तुम्हारी सौ गुस्ताखियां भी नादानी है,
और मेरी सच्ची बातें भी बेमानी है,
हां शायद रूठने का हक तो तुम्हें ही है।
मेरी मोहब्बत को बात-बात पर परखा जाता है,
और कभी मैं परखु तो उसे खता समझा जाता है,
क्योंकि रूठने का हक तो शायद तुम्हें ही है।
तुम्हारा बेवजह से घंटो चुप रहना,
मेरा बार-बार तुम्हें हंसाने की कोशिश करना,
और
उस पर तुम्हारा मुझ पर गुस्सा करना,
मैं भूल जाता हूं ,
क्योंकि रूठने का हक तो शायद तुम्हें ही है।
तुम्हारी परेशानियों को अपना समझना,
फिर तुम्हारे दर्द को महसूस कर लेना,
इस बात पर तुम नहीं समझोगे तुम्हारा यह कहना,
फिर भी तुम्हारा हाथ पकड़ कर मेरा साथ चलना ,
शायद तुम कभी समझ पाओ,
क्योंकि रूठने का हक तो शायद तुम्हें ही है।
तुम्हारी बेरुखी में भी मेरा मुस्कुराना,
तुम्हारी गलतियों को मेरा नादानी समझ भूल जाना,
तुम्हें उदास देख मेरा मनाना,
शायद तुम भूल जाओ,
क्योंकि रूठने का हक तो शायद तुम्हें ही है।
हां रूठने का हक तो शायद तुम्हें ही है ।।
©www.dynamicviews.co.in
Very nice... Ruthne ka hak go shayad tunhe hi h
ReplyDelete🙌🙌👌👌
ReplyDelete💐
DeleteBeautiful lines....kya baat kya baat
ReplyDelete😊
DeleteBeautiful lines....kya baat kya baat
ReplyDeleteAha.... Feelings of unconditional love.
ReplyDelete💐
DeleteTum nhi samjhoge 👌😃
ReplyDelete😊
Delete