उससे मिलने की ख्वाहिश तो कम नहीं होती,
पर जब वो सामने आए तो आंखें झुका गुजर जाना पड़ता है,
ये एक तरफा इश्क है साहब, इसे छुपाना पड़ता है।
ना चाहते हुए भी दिल को मनाना पड़ता है,
उसके ख्वाबों में डूबे खुद को जगाना पड़ता है,
ये एक तरफा इश्क है साहब, इसे हर दिन जताना पड़ता है।
कभी-कभी लगता है हम तेरे बगैर ही अच्छे हैं,
क्योंकि, इस इश्क में खुद को भुलाना पड़ता है,
ये एक तरफा इश्क है साहब, इसे निभाना पड़ता है।
ना चाहते हुए भी उसकी यादों में खो जाना पड़ता है,
फिर देख उसकी तस्वीर खुद को समझाना पड़ता है,
ये एक तरफा इश्क है साहब, इसमें चेहरों को भुलाना पड़ता है।
मुकम्मल कहां ये मेरे इश्क का फसाना है,
यहां हर दिन उसकी याद में खुद को जलाना पड़ता है,
ये एक तरफा इश्क है साहब, इसे छुपाना पड़ता है…..
ये एक तरफा इश्क है साहब, इसे निभाना पड़ता है।।
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